भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"छिड़ गये साज़े-इश्क़ के गाने / फ़िराक़ गोरखपुरी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=फ़िराक़ गोरखपुरी }} <poem> छिड़ गये साज़े-इश्क़ के ...)
(कोई अंतर नहीं)

11:55, 17 सितम्बर 2009 का अवतरण

  

छिड़ गये
साज़े-इश्क़ के गाने
खुल गये ज़िन्दगी के मयख़ाने

आज तो कुफ्रे-इश्क़े चौंक उठा आज तो बोल उठे हैं दीवाने
कुछ गराँ1 हो चला है बारे-नशात आज दुखते हैं हुस्ने के शाने2
बाद मुद्दत के तेरे हिज्र में ‍फि‍र आज बैठा हूँ दिल को समझाने
हासिले-हुस्नो-इश्क़ बस है यही आदमी आदमी को पहचाने

तू भी
आमादा-ए-सफ़र हो ‍फ़ि‍राक
काफ़िले उस तरफ़ लगे जाने

1- भारी, 2- कन्धे