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22:53, 17 सितम्बर 2009 के समय का अवतरण
ना जाने किसकी तलाश में
जन्मों से भटकती रही हूँ मैं
अपनी रूह से तेरे दिल की धड़कन तक
अपना नाम पढ़ती रही हूँ मैं
लिखा जब भी कोई गीत या ग़ज़ल
तू ही लफ़्ज़ों का लिबास पहने
मेरी कलम से उतरा है
यूँ चुपके से ख़ामोशी से
तेरे क़दमो की आहट
हर गुजरते लम्हे में सुनती रही हूँ मैं
खिलता चाँद हो या फिर बहकती बसंती हवा
सिर्फ़ तेरे छुअन के एक पल के एहसास से
ख़ुद ही महकती रही हूँ मैं
यूँ ही अपने ख़्यालों में देखा है
तेरी आँखो में प्यार का समुंदर
खोई सी तेरी इन नज़रो में
अपने लिए प्यार की इबादत पढ़ती रही हूँ मैं
पर आज तेरे लिखे मेरे अधूरे नाम ने
अचानक मुझे मेरे वज़ूद का एहसास करवा दिया
की तू आज भी मेरे दिल के हर कोने में मुस्कराता है
और तेरे लिए आज भी एक अजनबी रही हूँ मैं