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साँचा:KKPoemOfTheWeek

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<tr><td rowspan=2>[[चित्र:Lotus-48x48.png]]</td>
<td rowspan=2>&nbsp;<font size=4>सप्ताह की कविता</font></td>
<td>&nbsp;&nbsp;'''शीर्षक: '''दिल्ली होने से तो अच्छा हैपास रह के भी बोहत दूर हैं दोस्त<br>&nbsp;&nbsp;'''रचनाकार:''' [[विनय दुबेशकेब जलाली]]</td>
</tr>
</table>
<pre style="overflow:auto;height:21em;background:transparent; border:none">
मैं पहाड़ देखता हूँ
तो पहाड़ हो जाता हूँ
पेड़ देखता हूँपास रह के भी बोहत दूर हैं दोस्ततो पेड़ हो जाता हूँअपने हालात से मजबूर हैं दोस्त
नदी देखता हूँतर्क-ए-उल्फत भी नहीं कर सकतेतो नदी हो जाता हूँसाथ देने से भी माज़ूर हैं दोस्त
आकाश देखता हूँगुफ्तगू के लिए उनवां भी नहींतो आकाश हो जाता हूँबात करने पे भी मजबूर हैं दोस्त
दिल्ली की तरफ़ तो मैंयह चिराग अपने लिए रहने देभूलकर तेरी रातें भी नहीं देखता हूँदिल्ली होने से तो अच्छा हैअपनी रूखीबे-सूखी खाकरयहीं भोपाल में पड़ा रहूँ नूर हैं दोस्त
सभी पज़मुर्दा हैं महफ़िल में शकेब
मैं परेशान हूँ, रंजूर हैं दोस्त
</pre>
<!----BOX CONTENT ENDS------>
</div><div class='boxbottom'><div></div></div></div>
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