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"किसी के लिए महज खेल - तमाशा है यह शायद / रंजना भाटिया" के अवतरणों में अंतर
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पल भर में कैसे ज़िन्दगी बदल जाती है
किसी के एक इशारे से यह खेल खेल जाती है
सुबह निकलते हुए अब एक पल सोचता है मन
देखे हम आते हैं या कोई खबर घर भर को दहला जाती है
मुस्कराते चेहरे डूब जाते हैं आंसुओं में
इन्सान की जान कितनी सस्ती हो जाती है
किसी के लिए महज खेल - तमाशा है यह शायद
पर यहाँ पल भर में किसी की दुनिया बदल जाती है