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"अब वे मेरे गान कहाँ हैं / हरिवंशराय बच्चन" के अवतरणों में अंतर

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मेरा व्याकुल मन बहलानेवाले अब सामान कहाँ हैं!<br>
 
मेरा व्याकुल मन बहलानेवाले अब सामान कहाँ हैं!<br>
 
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जगती के नीरस मरुथल पर,<br>
 
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िचर वसंत-सेिवत सपनों के मेरे वे उद्यान कहाँ हैं!<br>
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चिर वसंत-सेवित सपनों के मेरे वे उद्यान कहा हैं!<br>
 
अब वे मेरे गान कहाँ हैं!<br><br>
 
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किस पर अपना प्यार चढाऊँ?<br>
 
यौवन का उद्गार चढाऊँ?<br>
 
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मेरी पूजा को सह लेने वाले वे पाषाण कहाँ है!<br>
 
मेरी पूजा को सह लेने वाले वे पाषाण कहाँ है!<br>
 
अब वे मेरे गान कहाँ हैं!<br><br>
 
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18:54, 1 फ़रवरी 2008 का अवतरण

लेखक: हरिवंशराय बच्चन

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टूट गई मरकत की प्याली,
लुप्त हुई मदिरा की लाली,
मेरा व्याकुल मन बहलानेवाले अब सामान कहाँ हैं!
अब वे मेरे गान कहाँ हैं!

जगती के नीरस मरुथल पर,
हँसता था मैं जिनके बल पर,
चिर वसंत-सेवित सपनों के मेरे वे उद्यान कहा हैं!
अब वे मेरे गान कहाँ हैं!

किस पर अपना प्यार चढाऊँ?
यौवन का उद्गार चढाऊँ?
मेरी पूजा को सह लेने वाले वे पाषाण कहाँ है!
अब वे मेरे गान कहाँ हैं!