"तेरे प्यार को तब मैं सच मानूं.. / रंजना भाटिया" के अवतरणों में अंतर
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हर पल मुझको तुम दिल से पुकारो
मेरी यादो के गहनो से ख़ुद को संवारो
साथ हर सुख-दुख में तेरा हो तो जानूँ....
तेरे प्यार को तब मैं सच मानूं
ग़म के अंधेरो का पहरा है मुझ पर
तन्हाईयों का असर गहरा है मुझ पर
मेरे साथ तुम ख़ुद को बहा लो तो जानूँ
तन्हाईयो के लम्हो को चुरा लो तो जानूँ
तेरे प्यार को तब मैं सच मानूं .......
अपनी वीरान रातो में क़रीब पाते हो मुझको
महफ़िल में तुम अपनी हबीब बनाते हो मुझको
मेरे जश्न-ए-बर्बादी में याद करो तो मानूं
तेरी दिल की बात को तब जा कर में पहचानू
तेरे प्यार को तब मैं सच मानूं .......
सोचना तुम्हारा गुलाब सा मुझको,
मेरी ख़ूबसूरती का जवाब था मुझको
पर काँटो की चुभन है जुदाई तुम्हारी
अब मुझको गले लगा लो तो जानूँ
तेरे प्यार को तब मैं सच मानूं......
दूर रह कर भी तेरे पास रहने का अहसास रहे
मेरा ज़िक्र तेरे ज़हन में, जिगर में ख़ास रहे
मेरे वजूद को इस कदर ख़ुद में समा लो तो जानू
मेरे जज़्बो को,ग़ज़लों के अल्फ़ाज़ो में सज़ा लो तो जानूँ
तेरे प्यार को तब मैं सच मानूं .....
ना हो कोई भी मेरे सिवा प्यारा ज़िंदगी में तेरी
बस मेरी आरज़ू, मेरी मोहब्बत हो त्रिशंगी में तेरी
इन उम्मीदों को मेरी तुम अपनी वफ़ा दो तो जानूँ
कुछ वादे मोहब्बत के हँस के निभा लो तो जानूँ
तब तेरे प्यार को मैं सच मानूं....................