भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"मुर्झाया फूल / महादेवी वर्मा" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महादेवी वर्मा |संग्रह=नीहार / महादेवी वर्मा }} <poem> ...)
 
पंक्ति 9: पंक्ति 9:
 
मुस्कराता था, खिलाती  
 
मुस्कराता था, खिलाती  
 
अंक में तुझको पवन !  
 
अंक में तुझको पवन !  
 
  
 
खिल गया जब पूर्ण तू-
 
खिल गया जब पूर्ण तू-
पंक्ति 15: पंक्ति 14:
 
लुब्ध मधु के हेतु मँडराते  
 
लुब्ध मधु के हेतु मँडराते  
 
लगे आने भ्रमर !  
 
लगे आने भ्रमर !  
 
  
 
स्निग्ध किरणें चन्द्र की-  
 
स्निग्ध किरणें चन्द्र की-  
पंक्ति 41: पंक्ति 39:
 
लाल अपना राग तुझपर
 
लाल अपना राग तुझपर
 
प्रात बरसाता नहीं।
 
प्रात बरसाता नहीं।
 +
 +
जिस पवन ने अंक में-
 +
ले प्यार था तुझको किया,
 +
तीव्र झोंके से सुला-
 +
उसने तुझे भू पर दिया।
 +
 +
कर दिया मधु और सौरभ
 +
दान सारा एक दिन,
 +
किन्तु रोता कौन है
 +
तेरे लिए दीनी सुमन?
  
  
 
</poem>
 
</poem>

02:01, 21 सितम्बर 2009 का अवतरण

था कली के रूप शैशव-
में अहो सूखे सुमन,
मुस्कराता था, खिलाती
अंक में तुझको पवन !

खिल गया जब पूर्ण तू-
मंजुल सुकोमल पुष्पवर,
लुब्ध मधु के हेतु मँडराते
लगे आने भ्रमर !

स्निग्ध किरणें चन्द्र की-
तुझको हँसाती थीं सदा,
रात तुझ पर वारती थी
मोतियों की सम्पदा !

लोरियाँ गाकर मधुप
निद्रा विवश करते तुझे,
यत्न माली का रहा-
आनन्द से भरता तुझे।

कर रहा अठखेलियाँ-
इतरा सदा उद्यान में,
अन्त का यह दृश्य आया-
था कभी क्या ध्यान में।

सो रहा अब तू धरा पर-
शुष्क बिखराया हुआ,
गन्ध कोमलता नहीं
मुख मंजु मुरझाया हुआ।

आज तुझको देखकर
चाहक भ्रमर घाता नहीं,
लाल अपना राग तुझपर
प्रात बरसाता नहीं।

जिस पवन ने अंक में-
ले प्यार था तुझको किया,
तीव्र झोंके से सुला-
उसने तुझे भू पर दिया।

कर दिया मधु और सौरभ
दान सारा एक दिन,
किन्तु रोता कौन है
तेरे लिए दीनी सुमन?