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उत्तर / महादेवी वर्मा

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|संग्रह=नीहार / महादेवी वर्मा
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<poem>इस एक बूँद आँसू में<br>चाहे साम्राज्य बहा दो<br>,वरदानों की वर्षा से<br>यह सूनापन बिखरा दो<br><br>;
इच्छा‌ओं की कम्पन से<br>सोता एकान्त जगा दो,<br>आशा की मुस्कराहट मुस्काहट पर<br>मेरा नैराश्य लुटा दो ।<br><br>
चाहे जर्जर तारों में<br>अपना मानस उलझा दो,<br>इन पलकों के प्यालो में<br>सुख का आसव छलका दो<br><br>;
मेरे बिखरे प्राणों में<br>सारी करुणा ढुलका दो,<br>मेरी छोटी सीमा में<br>अपना अस्तित्व मिटा दो !<br><br>
पर शेष नहीं होगी यह<br>मेरे प्राणों की क्रीड़ा,<br>तुमको पीड़ा में ढूँढा<br>तुम में ढूँढूँगी पीड़ा ! <br><br/poem>
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