भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"बैठे हैं दो टीलें / नरेश सक्सेना" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नरेश सक्सेना |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> :तनिक देर और आस...) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
(इसी सदस्य द्वारा किये गये बीच के 3 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 4: | पंक्ति 4: | ||
|संग्रह= | |संग्रह= | ||
}} | }} | ||
− | {{ | + | {{KKCatNavgeet}} |
<poem> | <poem> | ||
:तनिक देर और आसपास रहें | :तनिक देर और आसपास रहें | ||
− | ::चुप रहें, उदास रहें, | + | :::चुप रहें, उदास रहें, |
जाने फिर कैसी हो जाए यह शाम। | जाने फिर कैसी हो जाए यह शाम। | ||
पंक्ति 16: | पंक्ति 16: | ||
:दूर-दूर सड़क के किनारे पर | :दूर-दूर सड़क के किनारे पर | ||
− | सूखे | + | सूखे पत्तो के धुंधुआते से ढेर, |
:एक तरफ़ बैठे हैं दो टीले | :एक तरफ़ बैठे हैं दो टीले | ||
:गुमसुम-से पीठ फेर-फेर, | :गुमसुम-से पीठ फेर-फेर, | ||
:डूब रहा सभी कुछ अन्धेरे में | :डूब रहा सभी कुछ अन्धेरे में | ||
− | ::चुप्पी के घेरे में | + | :::चुप्पी के घेरे में |
पेड़ों पर चिड़ियों ने डाला कुहराम। | पेड़ों पर चिड़ियों ने डाला कुहराम। | ||
</poem> | </poem> |
20:13, 21 सितम्बर 2009 के समय का अवतरण
तनिक देर और आसपास रहें
चुप रहें, उदास रहें,
जाने फिर कैसी हो जाए यह शाम।
एक-एक कर पीले पत्तों का
टूटते चले जाना, इतने चुपचाप,
और तुम्हारा पलकें झपकाकर
प्रश्नों को लौटा लेना अपने आप।
दूर-दूर सड़क के किनारे पर
सूखे पत्तो के धुंधुआते से ढेर,
एक तरफ़ बैठे हैं दो टीले
गुमसुम-से पीठ फेर-फेर,
डूब रहा सभी कुछ अन्धेरे में
चुप्पी के घेरे में
पेड़ों पर चिड़ियों ने डाला कुहराम।