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"वह संसार नहीं मिलेगा / संध्या गुप्ता" के अवतरणों में अंतर

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और एक रोज़ कोई भी सामान
 
और एक रोज़ कोई भी सामान

20:29, 22 सितम्बर 2009 के समय का अवतरण

और एक रोज़ कोई भी सामान
अपनी जगह पर नहीं मिलेगा

एक रोज़ जब लौटोगे घर
और... वह संसार नही मिलेगा
वह मिटटी का चूल्हा
और लीपा हुआ आंगन नहीं होगा

लौटोगे... और
गौशाले में एक दुकान खुलने को तैयार मिलेगी

घर की सबसे बूढ़ी स्त्री के लिए
पिछवाड़े का सीलन और अंधेरे में डूबा कोई कमरा होगा

जिस किस्सागो मज़दूर ने अपनी गृहस्थी छोड़ कर
तुम्हारे यहाँ अपनी ज़िन्दगी गुज़ार दी
उसे देर रात तक बकबक बंद करने
और जल्दी सो जाने की हिदायत दी जाएगी

देखना-
विचार और संवेदना पर नये कपड़े होंगे!

लौट कर आओगे
और अपनों के बीच अपने कपड़ो
और जूतो से पहचाने जाओगे...!
वहाँ वह संसार नहीं मिलेगा !!