भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"सुबह / संध्या गुप्ता" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संध्या गुप्ता }} <poem> सूर्य का गोला आसमान पे उजले ...) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 3: | पंक्ति 3: | ||
|रचनाकार=संध्या गुप्ता | |रचनाकार=संध्या गुप्ता | ||
}} | }} | ||
− | + | {{KKCatKavita}} | |
<poem> | <poem> | ||
सूर्य का गोला आसमान पे उजले रंग से लिखता है - | सूर्य का गोला आसमान पे उजले रंग से लिखता है - |
20:30, 22 सितम्बर 2009 के समय का अवतरण
सूर्य का गोला आसमान पे उजले रंग से लिखता है -
सुबह
और चमक उठती हैं इस धरती पर जल की तरंगें
जीवन के रंगों से भर कर
तरोताज़ा हो उठती है हवा किरणों से नहा-धोकर
हल-बैल लिये किसान उतर पड़ते हैं खेतों में
नई उमंग के साथ नई फसल बोने को
निकल पड़ती हैं चींटियाँ अपने बिलों से कतारबद्ध
अपने गंतव्य की ओर ...और
परिन्दे कभी नहीं ठहरते अपने घोंसलों में
सुबह होने के बाद
...लेकिन मित्रो !
अफसोस! कि इधर बहुत दिनों से
सुबह नहीं हुई!
बेहद ज़रूरी है सुबह का होना
एक लम्बी काली रात के बाद
इन्तज़ार है धान को ओस का
और ओस को एक सुबह का...!!