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कभी पाबंदियों से छूट के भी दम घुटने लगता है / फ़िराक़ गोरखपुरी का नाम बदलकर कभी पाबंदियों से छुट के
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[[Category:ग़ज़ल]]
 <poem>कभी पाबन्दियों से छूट छुट के भी दम घुटने लगता है<BR>दरो-दीवार हो जिनमें वही ज़िन्दान ज़िन्दाँ नहीं होता<BR><BR> हमारा ये तजुर्बा है कि खुश ख़ुश होना मोहब्बत में<BR>कभी मुश्किल नहीं होता, कभी आसान आसाँ नहीं होता<BR><BR> बज़ा है ज़ब्त भी लेकिन मोहब्बत में कभी रो ले<BR>दबाने के लिये हर दर्द-ओ-नादान ऐ नादाँ ! नहीं होता<BR><BR> यकीं लायें तो क्या लायें, जो शक लायें तो क्या लायें<BR>कि बातों से तेरी सच झूठ का इम्कां इम्काँ नहीं होता <BR><BR/poem>