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"यूँ न मिल मुझ से ख़फ़ा हो जैसे / अहसान बिन 'दानिश'" के अवतरणों में अंतर

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यूँ न मिल मुझ से ख़फ़ा हो जैसे  
 
यूँ न मिल मुझ से ख़फ़ा हो जैसे  
साथ चल मौज-ए-सबा हो जैसे  
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साथ चल मौज़-ए-सबा हो जैसे  
  
 
लोग यूँ देख कर हँस देते हैं  
 
लोग यूँ देख कर हँस देते हैं  

21:06, 24 सितम्बर 2009 के समय का अवतरण

 
यूँ न मिल मुझ से ख़फ़ा हो जैसे
साथ चल मौज़-ए-सबा हो जैसे

लोग यूँ देख कर हँस देते हैं
तू मुझे भूल गया हो जैसे

इश्क़ को शिर्क की हद तक न बड़ा
यूँ न मिल हमसे ख़ुदा हो जैसे

मौत भी आई तो इस नाज़ के साथ
मुझपे एहसान किया हो जैसे

ऐसे अंजान बने बैठे हो
तुम को कुछ भी न पता हो जैसे

हिचकियाँ रात को आती ही रहीं
तू ने फिर याद किया हो जैसे

ज़िन्दगी बीत रही है "दानिश"
एक बेजुर्म सज़ा हो जैसे