भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"दाने / केदारनाथ सिंह" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
|संग्रह=अकाल में सारस / केदारनाथ सिंह  
 
|संग्रह=अकाल में सारस / केदारनाथ सिंह  
 
}}
 
}}
[[Category:कविताएँ]]
+
{{KKCatKavita‎}}
 
<Poem>
 
<Poem>
 
नहीं  
 
नहीं  

13:59, 25 सितम्बर 2009 के समय का अवतरण

नहीं
हम मण्डी नहीं जाएंगे
खलिहान से उठते हुए
कहते हैं दाने॔

जाएंगे तो फिर लौटकर नहीं आएंगे
जाते- जाते
कहते जाते हैं दाने

अगर लौट कर आये भी
तो तुम हमे पहचान नहीं पाओगे
अपनी अन्तिम चिट्ठी में
लिख भेजते हैं दाने

इसके बाद महीनों तक
बस्ती में
कोई चिट्ठी नहीं आती।

रचनाकाल : 1984