भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"वह / केदारनाथ सिंह" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) छो ("वह / केदारनाथ सिंह" सुरक्षित कर दिया [edit=sysop:move=sysop]) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 4: | पंक्ति 4: | ||
|संग्रह=अकाल में सारस / केदारनाथ सिंह | |संग्रह=अकाल में सारस / केदारनाथ सिंह | ||
}} | }} | ||
− | + | {{KKCatKavita}} | |
<Poem> | <Poem> | ||
इतने दिनों के बाद | इतने दिनों के बाद |
14:06, 25 सितम्बर 2009 के समय का अवतरण
इतने दिनों के बाद
वह इस समय ठीक
मेरे सामने है
न कुछ कहना
न सुनना
न पाना
न खोना
सिर्फ़ आँखों के आगे
एक परिचित चेहरे का होना
होना-
इतना ही काफ़ी है
बस इतने से
हल हो जाते हैं
बहुत-से सवाल
बहुत-से शब्दों में
बस इसी से भर आया है लबालब अर्थ
कि वह है
वह है
है
और चकित हूँ मैं
कि इतने बरस बाद
और इस कठिन समय में भी
वह बिल्कुल उसी तरह
हँस रही है
और बस
इतना ही काफ़ी है