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11:33, 26 सितम्बर 2009 के समय का अवतरण
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कविता
एक उश्रृंखल स्त्री है
और मैं उसके प्रेम में दीवाना
सौगंध तो रोज़ रोज़
आने की खाती है
पर आती है कभी-कभार ही
या बिल्कुल आती ही नहीं
कई बार।
अंग्रेज़ी से अनुवाद : यादवेन्द्र