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"निर्मल वर्मा की कहानियाँ-2 / मनीष मिश्र" के अवतरणों में अंतर
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02:12, 27 सितम्बर 2009 के समय का अवतरण
ये आपको भरती नहीं हैं
ये सब कुछ उलीच देती हैं
ये जाती हैं आपके जगमग पड़ोस में
और रख आती हैं एक सुगबुगाता मौन
ये दुख और मौन के विलक्षण अरण्य में भटकती हैं
ये देती जन्म एक शुरूआत को
जब ये ख़त्म होती हैं