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"जीवन में शेष विषाद रहा / हरिवंशराय बच्चन" के अवतरणों में अंतर
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जीवन में शेष विषाद रहा! | जीवन में शेष विषाद रहा! |
13:17, 29 सितम्बर 2009 के समय का अवतरण
जीवन में शेष विषाद रहा!
कुछ टूटे सपनों की बस्ती,
मिटने वाली यह भी हस्ती,
अवसाद बसा जिस खँडहर में, क्या उसमें ही उन्माद रहा!
जीवन में शेष विषाद रहा!
यह खँडहर ही था रंगमहल,
जिसमें थी मादक चहल-पहल,
लगता है यह खँडहर जैसे पहले न कभी आबाद रहा!
जीवन में शेष विषाद रहा!
जीवन में थे सुख के दिन भी,
जीवन में थे दुख के दिन भी,
पर, हाय हुआ ऐसा कैसे, सुख भूल गया, दुख याद रहा!
जीवन में शेष विषाद रहा!