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"तुम कौन थे भगत सिंह / राजीव रंजन प्रसाद" के अवतरणों में अंतर

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मकडियों नें हर कोने को सिल दिया है
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फहराती है आज़ादी का परचम
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मकडियों नें हर कोने को सिल दिया है<br />
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मैडम का जनमदिन है
उलटे लटके चमगादड<br />
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जनपथों के ट्रैफिक जाम है
देख रहें हैं<br />
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साहब का मरणदिन है
कैसे सिर के बल चलता आदमी<br />
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रेलडिब्बे के ट्वायलेट तक में लेट कर
भूल गया है अपनी ज़मीन<br />
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आदमी की खाल पहने सूअर
दीवारों पर की सीलन का<br />
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बढे आते हैं रैली को
फफूंद की आबादी को<br />
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थैली भर राशन उठायें
दावत पर आमंत्रण है<br />
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कि दिहाडी भी है, मुफ्त की गाडी भी है
दरवाज़ों पर दीमक की फौज़<br />
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देसी और ताडी भी है..
फहराती है आज़ादी का परचम<br />
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दाहिने-बांयें थम...<br />
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मैडम का जनमदिन है<br />
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और तुम भगतसिंह?
जनपथों के ट्रैफिक जाम है<br />
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पागल कहीं के
साहब का मरणदिन है<br />
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इस अह्सान फरामोश देश के लिये
रेलडिब्बे के ट्वायलेट तक में लेट कर<br />
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"आत्म हत्या” कर ली?
आदमी की खाल पहने सूअर<br />
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अंग्रेजी जोंक जब यह देश छोड कर गयी
बढे आते हैं रैली को<br />
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तो कफन खसोंट काबिज हो गये
थैली भर राशन उठायें<br />
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अब तो कुछ मौतें सरकारी पर्व हैं
कि दिहाडी भी है, मुफ्त की गाडी भी है<br />
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जिनके बेटों पोतों को विरासत में कुर्सियाँ मिली हैं
देसी और ताडी भी है..<br />
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निपूते तुम! किसको क्या दे सके?
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फाँसी पर लटक कर जिस जड को उखाडने का
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दिवा-स्पप्न था तुम्हारा
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वह अमरबेल हो गयी है
  
और तुम भगतसिंह?<br />
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आज 23 मार्च है...
पागल कहीं के<br />
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आज किसी बाग में फूल नहीं खिलते
इस अह्सान फरामोश देश के लिये<br />
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कि एक सरकारी माला गुंथ सके
"आत्म हत्या” कर ली?<br />
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मीडिया को आज भी
अंग्रेजी जोंक जब यह देश छोड कर गयी<br />
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किसी बलात्कार का
तो कफन खसोंट काबिज हो गये<br />
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लाईव और एक्सक्लूसिव
अब तो कुछ मौतें सरकारी पर्व हैं<br />
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खुलासा करना है
जिनके बेटों पोतों को विरासत में कुर्सियाँ मिली हैं<br />
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सारे संतरी मंत्री की ड्यूटी पर हैं
निपूते तुम! किसको क्या दे सके?<br />
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और सारे मंत्री उसी भवन में इकट्ठे
फाँसी पर लटक कर जिस जड को उखाडने का<br />
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जूतमपैजार में व्यस्त हैं
दिवा-स्पप्न था तुम्हारा<br />
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जिसके भीतर बम पटक कर तुम
वह अमरबेल हो गयी है<br />
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बहरों को सुनाना चाहते थे...
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बहरे अब अंधे भी हैं
  
आज 23 मार्च है...<br />
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तुम इस राष्ट्र के पिता-भ्राता या सुत
आज किसी बाग में फूल नहीं खिलते<br />
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'''तुम इस अभागे देश के कौन थे भगतसिंह
मीडिया को आज भी<br />
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खुलासा करना है<br />
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और सारे मंत्री उसी भवन में इकट्ठे<br />
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जूतमपैजार में व्यस्त हैं<br />
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जिसके भीतर बम पटक कर तुम<br />
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बहरों को सुनाना चाहते थे...<br />
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तुम इस राष्ट्र के पिता-भ्राता या सुत<br />
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कुछ भी तो नहीं<br />
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'''तुम इस अभागे देश के कौन थे भगतसिंह?<br />'''
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14:50, 30 सितम्बर 2009 का अवतरण

मकडियों नें हर कोने को सिल दिया है
उलटे लटके चमगादड
देख रहें हैं
कैसे सिर के बल चलता आदमी
भूल गया है अपनी ज़मीन
दीवारों पर की सीलन का
फफूंद की आबादी को
दावत पर आमंत्रण है
दरवाज़ों पर दीमक की फौज़
फहराती है आज़ादी का परचम
दाहिने-बांयें थम...

मैडम का जनमदिन है
जनपथों के ट्रैफिक जाम है
साहब का मरणदिन है
रेलडिब्बे के ट्वायलेट तक में लेट कर
आदमी की खाल पहने सूअर
बढे आते हैं रैली को
थैली भर राशन उठायें
कि दिहाडी भी है, मुफ्त की गाडी भी है
देसी और ताडी भी है..

और तुम भगतसिंह?
पागल कहीं के
इस अह्सान फरामोश देश के लिये
"आत्म हत्या” कर ली?
अंग्रेजी जोंक जब यह देश छोड कर गयी
तो कफन खसोंट काबिज हो गये
अब तो कुछ मौतें सरकारी पर्व हैं
जिनके बेटों पोतों को विरासत में कुर्सियाँ मिली हैं
निपूते तुम! किसको क्या दे सके?
फाँसी पर लटक कर जिस जड को उखाडने का
दिवा-स्पप्न था तुम्हारा
वह अमरबेल हो गयी है

आज 23 मार्च है...
आज किसी बाग में फूल नहीं खिलते
कि एक सरकारी माला गुंथ सके
मीडिया को आज भी
किसी बलात्कार का
लाईव और एक्सक्लूसिव
खुलासा करना है
सारे संतरी मंत्री की ड्यूटी पर हैं
और सारे मंत्री उसी भवन में इकट्ठे
जूतमपैजार में व्यस्त हैं
जिसके भीतर बम पटक कर तुम
बहरों को सुनाना चाहते थे...
बहरे अब अंधे भी हैं

तुम इस राष्ट्र के पिता-भ्राता या सुत
कुछ भी तो नहीं
तुम इस अभागे देश के कौन थे भगतसिंह