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'''आस्था - 1'''{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=राजीव रंजन प्रसाद |संग्रह=}}{{KKCatKavita}}<br /poem> मुझे गहरी आस्था है तुम पर<br />पत्थर को सिर झुका कर<br />मैने ही देवत्व दिया था<br />फिर<br />तुम तो मेरा ही दिल हो..<br /poem>
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