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| − | ले के भोंपू जरा टीम लो टाम लो | + | ले के भोंपू जरा टीम लो टाम लो |
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| − | जीत अपनी ही हो, हाथ गीता रहे | + | जीत अपनी ही हो, हाथ गीता रहे |
| − | रेत के हों, महल उसकी बुनियाद क्या? | + | रेत के हों, महल उसकी बुनियाद क्या? |
| − | पंख खोकर के तोते हैं आज़ाद क्या? | + | पंख खोकर के तोते हैं आज़ाद क्या? |
| − | जा के नापो फकीरे सड़क दर सड़क | + | जा के नापो फकीरे सड़क दर सड़क |
| − | मैं छिपा कर के जेबों के पैबंद को | + | मैं छिपा कर के जेबों के पैबंद को |
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| − | मैं पहाड़ी नदी से मिला था मगर | + | मैं पहाड़ी नदी से मिला था मगर |
| − | उसकी मैदान से दोस्ती हो | + | उसकी मैदान से दोस्ती हो गई |
| − | मैं किनारे की बालू में टूटा हुआ | + | मैं किनारे की बालू में टूटा हुआ |
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10:42, 1 अक्टूबर 2009 का अवतरण
जो भी अभियान है,
एक दूकान है
जैसे कोई अधेड़न लिपिस्टिक लपेटे
लबों पर खिलाती हो मुर्दा हँसी
तुम हँसे वो फँसी।
मैं फरेबों में जीते हुए थक गया
शाख में उलटे लटक पक गया
जिनके चेहरों में दिखते थे लब्बो-लुआब
मुझको दे कर के उल्लू कहते हैं वो
सीधा करो जनाब
ख़्वाब सारे तो हैं झुनझुने थाम लो
ले के भोंपू जरा टीम लो टाम लो
बिक सको तो ख़ुशी से कहो, दाम लो
मर सको तो सुकूँ से मरो, जाम लो
जो करो एक भरम हो जो जीता रहे
जीत अपनी ही हो, हाथ गीता रहे
रेत के हों, महल उसकी बुनियाद क्या?
पंख खोकर के तोते हैं आज़ाद क्या?
जा के नापो फकीरे सड़क दर सड़क
मैं छिपा कर के जेबों के पैबंद को
यूँ जमीं मे गड़ा, सुनता फरियाद क्या?
मैं पहाड़ी नदी से मिला था मगर
उसकी मैदान से दोस्ती हो गई
मैं किनारे की बालू में टूटा हुआ
सोचता हूँ कि जिनके लुटे होंगे मन
उनको भी मिलते होंगे मुआवजे क्या?
