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"केसरिया बालमवा... पधारो म्हारे देस... / राजीव रंजन प्रसाद" के अवतरणों में अंतर

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'''पधारो म्हारे देस'''<br />
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|रचनाकार=राजीव रंजन प्रसाद
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आदम ढूंढो, आदिम पाओ<br />
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रक्त पिपासु, प्यास बुझाओ<br />
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मेरी माँगें, तेरी माँगे<br />
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केसरिया बालमवा..
खींचे इसकी उसकी टाँगे<br />
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पधारो म्हारे देस...
मेरा परिचय, मेरी जाती<br />
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छलनी कर दो दूजी छाती<br />
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आदम ढूंढो, आदिम पाओ
नेताजी का ले कर नारा<br />
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रक्त पिपासु, प्यास बुझाओ
गुंडागर्दी धर्म हमारा<br />
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मेरी माँगें, तेरी माँग
हमें रोकने की जुर्ररत में<br />
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खींचे इसकी उसकी टाँग
खिंचवाने क्या केस<br />
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मेरा परिचय, मेरी जाती
पधारो म्हारे देस..<br />
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छलनी कर दो दूजी छाती
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नेताजी का ले कर नारा
किसका ज्यादा चौडा सीना<br />
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गुंडागर्दी धर्म हमारा
मैं गुज्जर हूँ, वो है मीणा<br />
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हमें रोकने की जुर्रत में
दोनों मिल कर आग लगायें<br />
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खिंचवाने क्या केस
रेलें रोकें बस सुलगायें<br />
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पधारो म्हारे देस..
कितना अपना भाईचारा<br />
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मिलकर हमने बाग उजाडा<br />
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किसका ज़्यादा चौड़ा सीना
बीन जला दो, धुन यह किसकी<br />
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मैं गुज्जर हूँ, वो है मीणा
भैंस उसी की लाठी जिसकी<br />
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दोनों मिल कर आग लगाएँ
मरे बिचारे आम दिहाडी<br />
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रेलें रोकें बस सुलगाएँ
गोली के आदेस<br />
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कितना अपना भाईचारा
पधारो म्हारे देस..<br />
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मिलकर हमने बाग उजाडा
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बीन जला दो, धुन यह किसकी
ईंट ईंट कर घर बनवाओ<br />
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भैंस उसी की लाठी जिसकी
जा कर उसमें आग लगाओ<br />
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मरे बिचारे आम दिहाडी
और अगर एसा कर पाओ<br />
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गोली के आदेस
हिम्मत वालों देश जलाओ<br />
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पधारो म्हारे देस..
अपनी पीडा ही पीडा है<br />
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भीतर यह कैसा कीडा है<br />
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ईंट-ईंट कर घर बनवाओ
अपनी भी देखो परछाई<br />
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जा कर उसमें आग लगाओ
निश्चित डर जाओगे भाई<br />
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और अगर ऐसा कर पाओ
बारूदों में रेत बदल दी<br />
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हिम्मत वालो देश जलाओ
इसी काज के क्लेस<br />
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अपनी पीडा ही पीडा है
पधारो म्हारे देस...<br />
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भीतर यह कैसा कीडा है
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अपनी भी देखो परछाई
जाग जाग शैतान जाग रे<br />
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निश्चित डर जाओगे भाई
आग आग हर ओर आग रे<br />
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बारूदों में रेत बदल दी
जला देश परिवेश नाच रे<br />
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इसी काज के क्लेस
झूम झूम आल्हे को बाँच रे<br />
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पधारो म्हारे देस...
इंसानों की मौत हो गयी<br />
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सोच सोच की सौत हो गयी<br />
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जाग-जाग शैतान जाग रे
होली रक्त चिता दीवाली<br />
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आग-आग हर ओर आग रे
गुलशन में उल्लू हर डाली<br />
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जला देश परिवेश नाच रे
हँसी सुनों, हैं सभी भेडिये<br />
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झूम-झूम आल्हे को बाँच रे
इंसानों के भेस<br />
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इंसानों की मौत हो गई
पधारो म्हारे देस...<br />
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सोच-सोच की सौत हो गई
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होली रक्त चिता दीवाली
केसरिया बालमवा.........!!!<br />
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गुलशन में उल्लू हर डाली
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हँसी सुनों, हैं सभी भेडिए
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इंसानों के भेस
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पधारो म्हारे देस...
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केसरिया बालमवा.........!!!
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10:58, 1 अक्टूबर 2009 का अवतरण

केसरिया बालमवा..
पधारो म्हारे देस...

आदम ढूंढो, आदिम पाओ
रक्त पिपासु, प्यास बुझाओ
मेरी माँगें, तेरी माँग
खींचे इसकी उसकी टाँग
मेरा परिचय, मेरी जाती
छलनी कर दो दूजी छाती
नेताजी का ले कर नारा
गुंडागर्दी धर्म हमारा
हमें रोकने की जुर्रत में
खिंचवाने क्या केस
पधारो म्हारे देस..

किसका ज़्यादा चौड़ा सीना
मैं गुज्जर हूँ, वो है मीणा
दोनों मिल कर आग लगाएँ
रेलें रोकें बस सुलगाएँ
कितना अपना भाईचारा
मिलकर हमने बाग उजाडा
बीन जला दो, धुन यह किसकी
भैंस उसी की लाठी जिसकी
मरे बिचारे आम दिहाडी
गोली के आदेस
पधारो म्हारे देस..

ईंट-ईंट कर घर बनवाओ
जा कर उसमें आग लगाओ
और अगर ऐसा कर पाओ
हिम्मत वालो देश जलाओ
अपनी पीडा ही पीडा है
भीतर यह कैसा कीडा है
अपनी भी देखो परछाई
निश्चित डर जाओगे भाई
बारूदों में रेत बदल दी
इसी काज के क्लेस
पधारो म्हारे देस...

जाग-जाग शैतान जाग रे
आग-आग हर ओर आग रे
जला देश परिवेश नाच रे
झूम-झूम आल्हे को बाँच रे
इंसानों की मौत हो गई
सोच-सोच की सौत हो गई
होली रक्त चिता दीवाली
गुलशन में उल्लू हर डाली
हँसी सुनों, हैं सभी भेडिए
इंसानों के भेस
पधारो म्हारे देस...

केसरिया बालमवा.........!!!