भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"केसरिया बालमवा... पधारो म्हारे देस... / राजीव रंजन प्रसाद" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 7: पंक्ति 7:
 
<poem>
 
<poem>
 
केसरिया बालमवा..
 
केसरिया बालमवा..
पधारो म्हारे देस...
+
पधारो म्हारे देस<ref>देश</ref>...
  
 
आदम ढूंढो, आदिम पाओ
 
आदम ढूंढो, आदिम पाओ
पंक्ति 13: पंक्ति 13:
 
मेरी माँगें, तेरी माँग
 
मेरी माँगें, तेरी माँग
 
खींचे इसकी उसकी टाँग
 
खींचे इसकी उसकी टाँग
मेरा परिचय, मेरी जाती
+
मेरा परिचय, मेरी जाति
 
छलनी कर दो दूजी छाती
 
छलनी कर दो दूजी छाती
 
नेताजी का ले कर नारा
 
नेताजी का ले कर नारा
 
गुंडागर्दी धर्म हमारा
 
गुंडागर्दी धर्म हमारा
 
हमें रोकने की जुर्रत में
 
हमें रोकने की जुर्रत में
खिंचवाने क्या केस
+
खिंचवाने क्या केस<ref>केश, बाल</ref>
 
पधारो म्हारे देस..
 
पधारो म्हारे देस..
  
पंक्ति 26: पंक्ति 26:
 
रेलें रोकें बस सुलगाएँ
 
रेलें रोकें बस सुलगाएँ
 
कितना अपना भाईचारा
 
कितना अपना भाईचारा
मिलकर हमने बाग उजाडा
+
मिलकर हमने बाग उजाड़ा
 
बीन जला दो, धुन यह किसकी
 
बीन जला दो, धुन यह किसकी
 
भैंस उसी की लाठी जिसकी
 
भैंस उसी की लाठी जिसकी
मरे बिचारे आम दिहाडी
+
मरे बिचारे आम दिहाड़ी
गोली के आदेस
+
गोली के आदेस<ref>आदेश, हुक़्म</ref>
 
पधारो म्हारे देस..
 
पधारो म्हारे देस..
  
पंक्ति 37: पंक्ति 37:
 
और अगर ऐसा कर पाओ
 
और अगर ऐसा कर पाओ
 
हिम्मत वालो देश जलाओ
 
हिम्मत वालो देश जलाओ
अपनी पीडा ही पीडा है
+
अपनी पीड़ा ही पीड़ा है
भीतर यह कैसा कीडा है
+
भीतर यह कैसा कीड़ा है
 
अपनी भी देखो परछाई
 
अपनी भी देखो परछाई
 
निश्चित डर जाओगे भाई
 
निश्चित डर जाओगे भाई
 
बारूदों में रेत बदल दी
 
बारूदों में रेत बदल दी
इसी काज के क्लेस
+
इसी काज के क्लेस<ref>क्लेश, लड़ाई</ref>
 
पधारो म्हारे देस...
 
पधारो म्हारे देस...
  
पंक्ति 53: पंक्ति 53:
 
होली रक्त चिता दीवाली
 
होली रक्त चिता दीवाली
 
गुलशन में उल्लू हर डाली
 
गुलशन में उल्लू हर डाली
हँसी सुनों, हैं सभी भेडिए
+
हँसी सुनों, हैं सभी भेड़िये
इंसानों के भेस
+
इंसानों के भेस<ref>भेष</ref>
 
पधारो म्हारे देस...
 
पधारो म्हारे देस...
  
 
केसरिया बालमवा.........!!!
 
केसरिया बालमवा.........!!!
 
</poem>
 
</poem>
 +
{{KKMeaning}}

15:04, 1 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण

केसरिया बालमवा..
पधारो म्हारे देस<ref>देश</ref>...

आदम ढूंढो, आदिम पाओ
रक्त पिपासु, प्यास बुझाओ
मेरी माँगें, तेरी माँग
खींचे इसकी उसकी टाँग
मेरा परिचय, मेरी जाति
छलनी कर दो दूजी छाती
नेताजी का ले कर नारा
गुंडागर्दी धर्म हमारा
हमें रोकने की जुर्रत में
खिंचवाने क्या केस<ref>केश, बाल</ref>
पधारो म्हारे देस..

किसका ज़्यादा चौड़ा सीना
मैं गुज्जर हूँ, वो है मीणा
दोनों मिल कर आग लगाएँ
रेलें रोकें बस सुलगाएँ
कितना अपना भाईचारा
मिलकर हमने बाग उजाड़ा
बीन जला दो, धुन यह किसकी
भैंस उसी की लाठी जिसकी
मरे बिचारे आम दिहाड़ी
गोली के आदेस<ref>आदेश, हुक़्म</ref>
पधारो म्हारे देस..

ईंट-ईंट कर घर बनवाओ
जा कर उसमें आग लगाओ
और अगर ऐसा कर पाओ
हिम्मत वालो देश जलाओ
अपनी पीड़ा ही पीड़ा है
भीतर यह कैसा कीड़ा है
अपनी भी देखो परछाई
निश्चित डर जाओगे भाई
बारूदों में रेत बदल दी
इसी काज के क्लेस<ref>क्लेश, लड़ाई</ref>
पधारो म्हारे देस...

जाग-जाग शैतान जाग रे
आग-आग हर ओर आग रे
जला देश परिवेश नाच रे
झूम-झूम आल्हे को बाँच रे
इंसानों की मौत हो गई
सोच-सोच की सौत हो गई
होली रक्त चिता दीवाली
गुलशन में उल्लू हर डाली
हँसी सुनों, हैं सभी भेड़िये
इंसानों के भेस<ref>भेष</ref>
पधारो म्हारे देस...

केसरिया बालमवा.........!!!

शब्दार्थ
<references/>