भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"चाँद-सितारों मिलकर गाओ / हरिवंशराय बच्चन" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
पंक्ति 14: | पंक्ति 14: | ||
चाँद-सितारों, मिलकर गाओ! | चाँद-सितारों, मिलकर गाओ! | ||
− | चाँद- | + | चाँद-सितारे, मिलकर बोले, |
कितनी बार गगन के नीचे | कितनी बार गगन के नीचे | ||
− | प्रणय- | + | प्रणय-मिलन व्यापार हुआ है, |
कितनी बार धरा पर प्रेयसि- | कितनी बार धरा पर प्रेयसि- | ||
प्रियतम का अभिसार हुआ है! | प्रियतम का अभिसार हुआ है! | ||
− | चाँद- | + | चाँद-सितारे, मिलकर बोले। |
− | चाँद-सितारों, मिलकर | + | चाँद-सितारों, मिलकर रोओ! |
आज अधर से अधर अलग है, | आज अधर से अधर अलग है, | ||
आज बाँह से बाँह अलग | आज बाँह से बाँह अलग | ||
पंक्ति 28: | पंक्ति 28: | ||
चाँद-सितारों, मिलकर रोओ! | चाँद-सितारों, मिलकर रोओ! | ||
− | चाँद- | + | चाँद-सितारे, मिलकर बोले, |
कितनी बार गगन के नीचे | कितनी बार गगन के नीचे | ||
अटल प्रणय का बंधन टूटे, | अटल प्रणय का बंधन टूटे, | ||
कितनी बार धरा के ऊपर | कितनी बार धरा के ऊपर | ||
− | प्रेयसि-प्रियतम के | + | प्रेयसि-प्रियतम के प्रण टूटे? |
− | चाँद- | + | चाँद-सितारे, मिलकर बोले। |
</poem> | </poem> |
19:46, 1 अक्टूबर 2009 का अवतरण
चाँद-सितारों, मिलकर गाओ!
आज अधर से अधर मिले हैं,
आज बाँह से बाँह मिली,
आज हृदय से हृदय मिले हैं,
मन से मन की चाह मिली;
चाँद-सितारों, मिलकर गाओ!
चाँद-सितारे, मिलकर बोले,
कितनी बार गगन के नीचे
प्रणय-मिलन व्यापार हुआ है,
कितनी बार धरा पर प्रेयसि-
प्रियतम का अभिसार हुआ है!
चाँद-सितारे, मिलकर बोले।
चाँद-सितारों, मिलकर रोओ!
आज अधर से अधर अलग है,
आज बाँह से बाँह अलग
आज हृदय से हृदय अलग है,
मन से मन की चाह अलग;
चाँद-सितारों, मिलकर रोओ!
चाँद-सितारे, मिलकर बोले,
कितनी बार गगन के नीचे
अटल प्रणय का बंधन टूटे,
कितनी बार धरा के ऊपर
प्रेयसि-प्रियतम के प्रण टूटे?
चाँद-सितारे, मिलकर बोले।