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"कोई नहीं, कोई नहीं / हरिवंशराय बच्चन" के अवतरणों में अंतर

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वन ले नए पल्‍लव खड़ा,
 
वन ले नए पल्‍लव खड़ा,
  
ऐसा फिरा जो लासके मेरे लिए विश्‍वास को-
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ऐसा फिरा जो ला सके मेरे लिए विश्‍वास को-
  
 
कोई नहीं, कोई नहीं!
 
कोई नहीं, कोई नहीं!

03:45, 2 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण

कोई नहीं, कोई नहीं!


यह भूमि है हाला-भरी,

मधुपात्र-मधुबाला-भरी,

ऐसा बुझा जो पा सके मेरे हृदय की प्‍यास को-

कोई नहीं, कोई नहीं!


सुनता, समझता है गगन,

वन के विहंगों के वचन,

ऐसा समझ जो पा सके मेरे हृदय- उच्‍छ्वास को-

कोई नहीं, कोई नहीं!


मधुऋतु समीरण चल पड़ा,

वन ले नए पल्‍लव खड़ा,

ऐसा फिरा जो ला सके मेरे लिए विश्‍वास को-

कोई नहीं, कोई नहीं!