भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"सुना कि एक स्‍वर्ग शोधता रहा / हरिवंशराय बच्चन" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 3: पंक्ति 3:
 
|रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन
 
|रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन
 
}}
 
}}
 
+
{{KKCatKavita}}
  
 
सुना कि एक स्‍वर्ग शोधता रहा,
 
सुना कि एक स्‍वर्ग शोधता रहा,

11:36, 2 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण

सुना कि एक स्‍वर्ग शोधता रहा,

सुना कि एक स्‍वप्‍न खोजता रहा,

सुना कि एक लोक भोगता रहा,

मुझे हरेक

शक्‍ति‍ का

प्रमाण है!


सुना कि सत्‍या से न भक्‍ति‍ हो सकी,

सुना कि स्‍वप्‍न से न मुक्‍ति‍ हो सकी,

सुना कि भोग से न तृप्‍ति‍ हो सकी,

विफल मनुष्‍य

सब तरु़

समान है!


विराग मग्‍न हो कि रात रत रहे,

विलीन कल्‍पना कि सत्‍य में दहे,

धरीन पुण्‍य का कि पाप में बहे,

मुझे मनुष्‍य

सब जगह

महान है!