भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"आए हैं मीर मुँह को बनाए / मीर तक़ी 'मीर'" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मीर तक़ी 'मीर' |संग्रह= }} Category:ग़ज़ल <poem>आए हैं मीर ...)
 
 
पंक्ति 5: पंक्ति 5:
 
}}
 
}}
 
[[Category:ग़ज़ल]]
 
[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>आए हैं मीर मुँह को बनाए जफ़ा से आज
+
<poem>आए हैं मीर मुँह को बनाए जफ़ा से आज
 
शायद बिगड़ गयी है उस बेवफा से आज
 
शायद बिगड़ गयी है उस बेवफा से आज
  
पंक्ति 11: पंक्ति 11:
 
हम चाहते हैं मौत तो अपने खुदा से आज
 
हम चाहते हैं मौत तो अपने खुदा से आज
  
साक़ी टुक एक मौसम गुल की तरफ़ भी देख
+
साक़ी टुक एक मौसम-ए-गुल की तरफ़ भी देख
 
टपका पड़े है रंग चमन में हवा से आज
 
टपका पड़े है रंग चमन में हवा से आज
  
 
था जी में उससे मिलिए तो क्या क्या न कहिये 'मीर'
 
था जी में उससे मिलिए तो क्या क्या न कहिये 'मीर'
पर कुछ कहा गया न ग़मे दिल हया से आज
+
पर कुछ कहा गया न ग़म-ए-दिल हया से आज

16:29, 2 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण

आए हैं मीर मुँह को बनाए जफ़ा से आज
शायद बिगड़ गयी है उस बेवफा से आज

जीने में इख्तियार नहीं वरना हमनशीं
हम चाहते हैं मौत तो अपने खुदा से आज

साक़ी टुक एक मौसम-ए-गुल की तरफ़ भी देख
टपका पड़े है रंग चमन में हवा से आज

था जी में उससे मिलिए तो क्या क्या न कहिये 'मीर'
पर कुछ कहा गया न ग़म-ए-दिल हया से आज