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"आए हैं मीर मुँह को बनाए / मीर तक़ी 'मीर'" के अवतरणों में अंतर
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था जी में उससे मिलिए तो क्या क्या न कहिये 'मीर' | था जी में उससे मिलिए तो क्या क्या न कहिये 'मीर' | ||
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16:29, 2 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण
आए हैं मीर मुँह को बनाए जफ़ा से आज
शायद बिगड़ गयी है उस बेवफा से आज
जीने में इख्तियार नहीं वरना हमनशीं
हम चाहते हैं मौत तो अपने खुदा से आज
साक़ी टुक एक मौसम-ए-गुल की तरफ़ भी देख
टपका पड़े है रंग चमन में हवा से आज
था जी में उससे मिलिए तो क्या क्या न कहिये 'मीर'
पर कुछ कहा गया न ग़म-ए-दिल हया से आज