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"काल क्रम से- / हरिवंशराय बच्चन" के अवतरणों में अंतर
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जिसके आगे पर्वत झुकते- | जिसके आगे पर्वत झुकते- | ||
− | प्राणों का | + | प्राणों का प्यारा धन-कंचन |
सहसा अपहृत हो जाने पर | सहसा अपहृत हो जाने पर | ||
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जीवन में जो कुछ बचता है, | जीवन में जो कुछ बचता है, | ||
− | उसका भी | + | उसका भी है कुछ आकर्षण। |
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जिसको समझा सुकरात नहीं- | जिसको समझा सुकरात नहीं- | ||
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सहसा अपहृत हो जाने पर | सहसा अपहृत हो जाने पर | ||
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जीवन में जो कुछ बचता है, | जीवन में जो कुछ बचता है, | ||
− | उसका भी | + | उसका भी है कुछ आकर्षण। |
− | + | आत्म भ्रम से- | |
जिससे योगी ठग जाते हैं, | जिससे योगी ठग जाते हैं, | ||
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गुरू ज्ञानी धोखा खाते हैं- | गुरू ज्ञानी धोखा खाते हैं- | ||
− | + | स्वप्नों का प्यारा धन-कंचन | |
सहसा अपहृत हो जाने पर | सहसा अपहृत हो जाने पर | ||
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जीवन में जो कुछ बचता है, | जीवन में जो कुछ बचता है, | ||
− | उसका भी | + | उसका भी है कुछ आकर्षण। |
कालक्रम से, नियति-नियति से, | कालक्रम से, नियति-नियति से, | ||
− | + | आत्म भ्रम से, | |
रह न गया जो, मिल न सका जो, | रह न गया जो, मिल न सका जो, | ||
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अपना सपना, | अपना सपना, | ||
− | + | इन्हें छोड़कर जीवन जितना, | |
उसमें भी आकर्षक कितना! | उसमें भी आकर्षक कितना! |
19:24, 2 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण
काल क्रम से-
जिसके आगे झंझा रूकते,
जिसके आगे पर्वत झुकते-
प्राणों का प्यारा धन-कंचन
सहसा अपहृत हो जाने पर
जीवन में जो कुछ बचता है,
उसका भी है कुछ आकर्षण।
नियति नियम से-
जिसको समझा सुकरात नहीं-
जिसको बूझा बुकरात नहीं-
क़िस्मत का प्यारा धन-कंचन
सहसा अपहृत हो जाने पर
जीवन में जो कुछ बचता है,
उसका भी है कुछ आकर्षण।
आत्म भ्रम से-
जिससे योगी ठग जाते हैं,
गुरू ज्ञानी धोखा खाते हैं-
स्वप्नों का प्यारा धन-कंचन
सहसा अपहृत हो जाने पर
जीवन में जो कुछ बचता है,
उसका भी है कुछ आकर्षण।
कालक्रम से, नियति-नियति से,
आत्म भ्रम से,
रह न गया जो, मिल न सका जो,
सच न हुआ जो,
प्रिय जन अपना, प्रिय धन अपना,
अपना सपना,
इन्हें छोड़कर जीवन जितना,
उसमें भी आकर्षक कितना!