भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"काल क्रम से- / हरिवंशराय बच्चन" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
|संग्रह=आकुल अंतर / हरिवंशराय बच्चन
 
|संग्रह=आकुल अंतर / हरिवंशराय बच्चन
 
}}
 
}}
 
+
{{KKCatKavita}}
 
काल क्रम से-
 
काल क्रम से-
  
पंक्ति 17: पंक्ति 17:
 
जीवन में जो कुछ बचता है,
 
जीवन में जो कुछ बचता है,
  
उसका भी कुछ है आकर्षण।
+
उसका भी है कुछ आकर्षण।
  
  
पंक्ति 32: पंक्ति 32:
 
जीवन में जो कुछ बचता है,
 
जीवन में जो कुछ बचता है,
  
उसका भी कुछ है आकर्षण।
+
उसका भी है कुछ आकर्षण।
  
  
पंक्ति 47: पंक्ति 47:
 
जीवन में जो कुछ बचता है,
 
जीवन में जो कुछ बचता है,
  
उसका भी कुछ है आकर्षण।
+
उसका भी है कुछ आकर्षण।
  
  
 
कालक्रम से, नियति-नियति से,
 
कालक्रम से, नियति-नियति से,
  
आत्म भ्रम से
+
आत्म भ्रम से,
  
 
रह न गया जो, मिल न सका जो,
 
रह न गया जो, मिल न सका जो,

19:24, 2 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण

काल क्रम से-

जिसके आगे झंझा रूकते,

जिसके आगे पर्वत झुकते-

प्राणों का प्यारा धन-कंचन

सहसा अपहृत हो जाने पर

जीवन में जो कुछ बचता है,

उसका भी है कुछ आकर्षण।


नियति नियम से-

जिसको समझा सुकरात नहीं-

जिसको बूझा बुकरात नहीं-

क़िस्मत का प्यारा धन-कंचन

सहसा अपहृत हो जाने पर

जीवन में जो कुछ बचता है,

उसका भी है कुछ आकर्षण।


आत्म भ्रम से-

जिससे योगी ठग जाते हैं,

गुरू ज्ञानी धोखा खाते हैं-

स्वप्नों का प्यारा धन-कंचन

सहसा अपहृत हो जाने पर

जीवन में जो कुछ बचता है,

उसका भी है कुछ आकर्षण।


कालक्रम से, नियति-नियति से,

आत्म भ्रम से,

रह न गया जो, मिल न सका जो,

सच न हुआ जो,

प्रिय जन अपना, प्रिय धन अपना,

अपना सपना,

इन्हें छोड़कर जीवन जितना,

उसमें भी आकर्षक कितना!