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"यह संध्या फूली / महादेवी वर्मा" के अवतरणों में अंतर
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यह संध्या फूली सजीली ! <br> | यह संध्या फूली सजीली ! <br> |
23:48, 2 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण
यह संध्या फूली सजीली !
आज बुलाती हैं विहगों को नीड़ें बिन बोले;
रजनी ने नीलम-मन्दिर के वातायन खोले;
एक सुनहली उर्म्मि क्षितिज से टकराई बिखरी,
तम ने बढ़कर बीन लिए, वे लघु कण बिन तोले !
अनिल ने मधु-मदिरा पी ली !
मुरझाया वह कंज बना जो मोती का दोना,
पाया जिसने प्रात उसी को है अब कुछ खोना;
आज सुनहली रेणु मली सस्मित गोधूली ने; रजनीगंधा आँज रही है नयनों में सोना !