भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"संकर से सुर जाहिं जपैं / रसखान" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(कोई अंतर नहीं)

14:39, 13 नवम्बर 2006 का अवतरण

संकर से सुर जाहिं जपैं चतुरानन ध्यानन धर्म बढ़ावैं।

नेक हिये में जो आवत ही जड़ मूढ़ महा रसखान कहावै।।

जा पर देव अदेव भुअंगन वारत प्रानन प्रानन पावैं।

ताहिं अहीर की छोहरियाँ छछिया भरि छाछ पे नाच नचावैं।।