भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"साथी, साथ न देगा दुख भी / हरिवंशराय बच्चन" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन |संग्रह=निशा निमन्त्रण / हरिवं...)
 
पंक्ति 8: पंक्ति 8:
 
साथी, साथ न देगा दुख भी!
 
साथी, साथ न देगा दुख भी!
  
 +
काल छीनने दु:ख आता है,
 +
जब दु:ख भी प्रिय हो जाता है,
 +
नहीं चाहते जब हम दु:ख के बदले चिर सुख भी!
 +
साथी साथ ना देगा दु:ख भी!
  
 +
 +
जब परवशता का कर अनुभव
 +
अश्रु बहाना पडता नीरव,
 +
उसी विवशता से दुनिया में होना पडता है हंसमुख भी!
 +
साथी साथ ना देगा दु:ख भी!<br>
 +
 +
 +
इसे कहूं कर्तव्य-सुघरता
 +
या विरक्ति, या केवल जड़ता,
 +
भिन्न सुखों से, भिन्न दुखों से, होता है जीवन का रुख भी!
 +
साथी साथ ना देगा दु:ख भी!
 
</poem>
 
</poem>

13:19, 4 अक्टूबर 2009 का अवतरण

साथी, साथ न देगा दुख भी!

काल छीनने दु:ख आता है,
जब दु:ख भी प्रिय हो जाता है,
नहीं चाहते जब हम दु:ख के बदले चिर सुख भी!
साथी साथ ना देगा दु:ख भी!


जब परवशता का कर अनुभव
अश्रु बहाना पडता नीरव,
उसी विवशता से दुनिया में होना पडता है हंसमुख भी!
साथी साथ ना देगा दु:ख भी!



इसे कहूं कर्तव्य-सुघरता
या विरक्ति, या केवल जड़ता,
भिन्न सुखों से, भिन्न दुखों से, होता है जीवन का रुख भी!
साथी साथ ना देगा दु:ख भी!