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"तू क्यों बैठ गया है पथ पर? / हरिवंशराय बच्चन" के अवतरणों में अंतर
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− | तू | + | तू क्यों बैठ गया है पथ पर? |
− | + | ध्येय न हो, पर है मग आगे, | |
बस धरता चल तू पग आगे, | बस धरता चल तू पग आगे, | ||
बैठ न चलनेवालों के दल में तू आज तमाशा बनकर! | बैठ न चलनेवालों के दल में तू आज तमाशा बनकर! | ||
− | तू | + | तू क्यों बैठ गया है पथ पर? |
मानव का इतिहास रहेगा | मानव का इतिहास रहेगा | ||
कहीं, पुकार-पुकार कहेगा- | कहीं, पुकार-पुकार कहेगा- | ||
− | + | निश्चय था गिर मर जाएगा चलता किंतु रहा जीवन भर! | |
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जीवित भी तू आज मरा-सा, | जीवित भी तू आज मरा-सा, | ||
पर मेरी तो यह अभिलाषा- | पर मेरी तो यह अभिलाषा- | ||
चिता-निकट भी पहुँच सकूँ मैं अपने पैरों-पैरों चलकर! | चिता-निकट भी पहुँच सकूँ मैं अपने पैरों-पैरों चलकर! | ||
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13:30, 4 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण
तू क्यों बैठ गया है पथ पर?
ध्येय न हो, पर है मग आगे,
बस धरता चल तू पग आगे,
बैठ न चलनेवालों के दल में तू आज तमाशा बनकर!
तू क्यों बैठ गया है पथ पर?
मानव का इतिहास रहेगा
कहीं, पुकार-पुकार कहेगा-
निश्चय था गिर मर जाएगा चलता किंतु रहा जीवन भर!
तू क्यों बैठ गया है पथ पर?
जीवित भी तू आज मरा-सा,
पर मेरी तो यह अभिलाषा-
चिता-निकट भी पहुँच सकूँ मैं अपने पैरों-पैरों चलकर!
तू क्यों बैठ गया है पथ पर?