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"याचना / रघुवीर सहाय" के अवतरणों में अंतर
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− | श्वास के हर कम्प | + |
19:39, 4 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण
युक्ति के सारे नियंत्रण तोड़ डाले,
मुक्ति के कारण नियम सब छोड़ डाले,
अब तुम्हारे बंधनों की कामना है|
विरह यामिनी में न पल भर नींद आई,
क्यों मिलन के प्रात वह नैनों समाई,
एक क्षण में ही तो मिलन में जागना है|
यह अभागा प्यार ही यदि है भुलाना,
तो विरह के वे कठिन क्षण भूल जाना,
हाय जिनका भूलना मुझको मना है |
मुक्त हो उच्छ्वास अंबर मापता है,
तारकों के पास जा कुछ काँपता है,
श्वास के हर कम्प में कुछ याचना है|