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चंद शेर / बशीर बद्र

12 bytes added, 06:25, 14 जून 2007
उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो
 
न जाने किस गली में ज़िन्दगी की शाम हो जाये ।
ज़िन्दगी तूने मुझे कब्र से कम दी है ज़मीं
 
पाँव फैलाऊँ तो दीवार में सर लगता है ।
जी बहुत चाहता है सच बोलें
 
क्या करें हौसला नहीं होता ।
दुश्मनी जम कर करो लेकिन ये गुँजाइश रहे
 
जब कभी हम दोस्त हो जायें तो शर्मिन्दा न हों ।
एक दिन तुझ से मिलनें ज़रूर आऊँगा
 
ज़िन्दगी मुझ को तेरा पता चाहिये ।
इतनी मिलती है मेरी गज़लों से सूरत तेरी
 
लोग तुझ को मेरा महबूब समझते होंगे ।
वो ज़ाफ़रानी पुलोवर उसी का हिस्सा है
 
कोई जो दूसरा पहने तो दूसरा ही लगे ।
लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में
 
तुम तरस नहीं खाते बस्तियां जलानें में।
पलकें भी चमक जाती हैं सोते में हमारी,
 
आँखों को अभी ख्वाब छुपाने नहीं आते ।
तमाम रिश्तों को मैं घर पे छोड़ आया था.
 
फिर उस के बाद मुझे कोई अजनबी नहीं मिला ।
मैं कब कहता हूँ वो अच्छा बहुत है
 
मगर उस नें मुझे चाहा बहुत है ।
मैं इतना बदमुआश नहीं यानि खुल के बैठ
 
चुभने लगी है धूप तो स्वेटर उतार दे ।
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