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Kavita Kosh से
|रचनाकार=बशीर बद्र
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कभी यूँ भी आ मेरी आँख में के मेरी नज़र को ख़बर न हो
तुझे भूलने की दुआ करूँ तो दुआ में मेरी असर न हो
मेरे बाज़ुओं में थकी -थकी , अभी महव-ए-ख़्वाब है चांदनी
न उठे सितारों की पालकी, अभी आहटों का गुज़र न हो
मेरे पास मेरे हबीब आ ज़रा और दिल के क़रीब आ
तुझे धड़कनों में बसा लूँ मैं के बिछड़ने का कभी कोई डर न हो
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