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"एक लहर फैली अनन्त की / त्रिलोचन" के अवतरणों में अंतर
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20:34, 4 अक्टूबर 2009 का अवतरण
सीधी है भाषा बसन्त की
कभी आँख ने समझी
कभी कान ने पाई
कभी रोम-रोम से
प्राणों में भर आई
और है कहानी दिगन्त की
नीले आकाश में
नई ज्योति छा गई
कब से प्रतीक्षा थी
वही बात आ गई
एक लहर फैली अनन्त की ।