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"हुस्ने-सीरत पर नज़र कर, हुस्ने-सूरत को न देख / आरज़ू लखनवी" के अवतरणों में अंतर
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21:10, 5 अक्टूबर 2009 का अवतरण
हुस्ने-सीरत पर नज़र कर, हुस्ने-सूरत को न देख।
आदमी है नाम का गर ख़ू नहीं इन्सान की॥
ध्यान आता है कि टूटा था, ग़लमफ़हमी में अहद।
यादगार इक है तो धुंधली सी मगर किस शान की॥