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"फिर ‘आरज़ू’ को दर से उठा, पहले यह बता / आरज़ू लखनवी" के अवतरणों में अंतर

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22:04, 5 अक्टूबर 2009 का अवतरण

फिर ‘आरजू’ को दर से उठा, पहले यह बता।
आखिर ग़रीब जाये कहाँ और कहाँ रहे॥

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था शौके़दीद ताब-ए-आदाबे-बज़्मेनाज़।
यानी बचा-बचा के नज़र देखते रहे॥

अहले-क़फ़स का ख़ौफ़ज़दा शौक़ क्या कहूँ?
सूएचमन समेट के पर देखते रहे॥