"कुंज कुटीरे यमुना तीरे / माखनलाल चतुर्वेदी" के अवतरणों में अंतर
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पगली तेरा ठाट ! | पगली तेरा ठाट ! | ||
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किया है रतनाम्बर परिधान | किया है रतनाम्बर परिधान | ||
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अपने काबू नहीं, | अपने काबू नहीं, | ||
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और यह सत्याचरण विधान ! | और यह सत्याचरण विधान ! | ||
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उन्मादक मीठे सपने ये, | उन्मादक मीठे सपने ये, | ||
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ये न अधिक अब ठहरें, | ये न अधिक अब ठहरें, | ||
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साक्षी न हों, न्याय-मन्दिर में | साक्षी न हों, न्याय-मन्दिर में | ||
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कालिन्दी की लहरें। | कालिन्दी की लहरें। | ||
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डोर खींच मत शोर मचा, | डोर खींच मत शोर मचा, | ||
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मत बहक, लगा मत जोर, | मत बहक, लगा मत जोर, | ||
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माँझी, थाह देखकर आ | माँझी, थाह देखकर आ | ||
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तू मानस तट की ओर । | तू मानस तट की ओर । | ||
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कौन गा उठा? अरे! | कौन गा उठा? अरे! | ||
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करे क्यों ये पुतलियाँ अधीर? | करे क्यों ये पुतलियाँ अधीर? | ||
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इसी कैद के बन्दी हैं | इसी कैद के बन्दी हैं | ||
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वे श्यामल-गौर-शरीर। | वे श्यामल-गौर-शरीर। | ||
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पलकों की चिक पर | पलकों की चिक पर | ||
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हृत्तल के छूट रहे फव्वारे, | हृत्तल के छूट रहे फव्वारे, | ||
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नि:श्वासें पंखे झलती हैं | नि:श्वासें पंखे झलती हैं | ||
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उनसे मत गुंजारे; | उनसे मत गुंजारे; | ||
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यही व्याधि मेरी समाधि है, | यही व्याधि मेरी समाधि है, | ||
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यही राग है त्याग; | यही राग है त्याग; | ||
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क्रूर तान के तीखे शर, | क्रूर तान के तीखे शर, | ||
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मत छेदे मेरे भाग। | मत छेदे मेरे भाग। | ||
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काले अंतस्तल से छूटी | काले अंतस्तल से छूटी | ||
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कालिन्दी की धार | कालिन्दी की धार | ||
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पुतली की नौका पर | पुतली की नौका पर | ||
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लायी मैं दिलदार उतार | लायी मैं दिलदार उतार | ||
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बादबान तानी पलकों ने, | बादबान तानी पलकों ने, | ||
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हा! यह क्या व्यापार ! | हा! यह क्या व्यापार ! | ||
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कैसे ढूँढ़ू हृदय-सिन्धु में | कैसे ढूँढ़ू हृदय-सिन्धु में | ||
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छूट पड़ी पतवार ! | छूट पड़ी पतवार ! | ||
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भूली जाती हूँ अपने को, | भूली जाती हूँ अपने को, | ||
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प्यारे, मत कर शोर, | प्यारे, मत कर शोर, | ||
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भाग नहीं, गह लेने दे, | भाग नहीं, गह लेने दे, | ||
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अपने अम्बर का छोर। | अपने अम्बर का छोर। | ||
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अरे बिकी बेदाम कहाँ मैं, | अरे बिकी बेदाम कहाँ मैं, | ||
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हुई बड़ी तकसीर, | हुई बड़ी तकसीर, | ||
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धोती हूँ; जो बना चुकी | धोती हूँ; जो बना चुकी | ||
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हूँ पुतली में तसवीर; | हूँ पुतली में तसवीर; | ||
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डरती हूँ दिखलायी पड़ती | डरती हूँ दिखलायी पड़ती | ||
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तेरी उसमें बंसी | तेरी उसमें बंसी | ||
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कुंज कुटीरे, यमुना तीरे | कुंज कुटीरे, यमुना तीरे | ||
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तू दिखता जदुबंसी। | तू दिखता जदुबंसी। | ||
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अपराधी हूँ, मंजुल मूरत | अपराधी हूँ, मंजुल मूरत | ||
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ताकी, हा! क्यों ताकी? | ताकी, हा! क्यों ताकी? | ||
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बनमाली हमसे न धुलेगी | बनमाली हमसे न धुलेगी | ||
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ऐसी बाँकी झाँकी। | ऐसी बाँकी झाँकी। | ||
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अरी खोद कर मत देखे, | अरी खोद कर मत देखे, | ||
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वे अभी पनप पाये हैं, | वे अभी पनप पाये हैं, | ||
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बड़े दिनों में खारे जल से, | बड़े दिनों में खारे जल से, | ||
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कुछ अंकुर आये हैं, | कुछ अंकुर आये हैं, | ||
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पत्ती को मस्ती लाने दे, | पत्ती को मस्ती लाने दे, | ||
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कलिका कढ़ जाने दे, | कलिका कढ़ जाने दे, | ||
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अन्तर तर को, अन्त चीर कर, | अन्तर तर को, अन्त चीर कर, | ||
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अपनी पर आने दे, | अपनी पर आने दे, | ||
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ही-तल बेध, समस्त खेद तज, | ही-तल बेध, समस्त खेद तज, | ||
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मैं दौड़ी आऊँगी, | मैं दौड़ी आऊँगी, | ||
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नील सिंधु-जल-धौत चरण | नील सिंधु-जल-धौत चरण | ||
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पर चढ़कर खो जाऊँगी। | पर चढ़कर खो जाऊँगी। | ||
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02:06, 6 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण
पगली तेरा ठाट !
किया है रतनाम्बर परिधान
अपने काबू नहीं,
और यह सत्याचरण विधान !
उन्मादक मीठे सपने ये,
ये न अधिक अब ठहरें,
साक्षी न हों, न्याय-मन्दिर में
कालिन्दी की लहरें।
डोर खींच मत शोर मचा,
मत बहक, लगा मत जोर,
माँझी, थाह देखकर आ
तू मानस तट की ओर ।
कौन गा उठा? अरे!
करे क्यों ये पुतलियाँ अधीर?
इसी कैद के बन्दी हैं
वे श्यामल-गौर-शरीर।
पलकों की चिक पर
हृत्तल के छूट रहे फव्वारे,
नि:श्वासें पंखे झलती हैं
उनसे मत गुंजारे;
यही व्याधि मेरी समाधि है,
यही राग है त्याग;
क्रूर तान के तीखे शर,
मत छेदे मेरे भाग।
काले अंतस्तल से छूटी
कालिन्दी की धार
पुतली की नौका पर
लायी मैं दिलदार उतार
बादबान तानी पलकों ने,
हा! यह क्या व्यापार !
कैसे ढूँढ़ू हृदय-सिन्धु में
छूट पड़ी पतवार !
भूली जाती हूँ अपने को,
प्यारे, मत कर शोर,
भाग नहीं, गह लेने दे,
अपने अम्बर का छोर।
अरे बिकी बेदाम कहाँ मैं,
हुई बड़ी तकसीर,
धोती हूँ; जो बना चुकी
हूँ पुतली में तसवीर;
डरती हूँ दिखलायी पड़ती
तेरी उसमें बंसी
कुंज कुटीरे, यमुना तीरे
तू दिखता जदुबंसी।
अपराधी हूँ, मंजुल मूरत
ताकी, हा! क्यों ताकी?
बनमाली हमसे न धुलेगी
ऐसी बाँकी झाँकी।
अरी खोद कर मत देखे,
वे अभी पनप पाये हैं,
बड़े दिनों में खारे जल से,
कुछ अंकुर आये हैं,
पत्ती को मस्ती लाने दे,
कलिका कढ़ जाने दे,
अन्तर तर को, अन्त चीर कर,
अपनी पर आने दे,
ही-तल बेध, समस्त खेद तज,
मैं दौड़ी आऊँगी,
नील सिंधु-जल-धौत चरण
पर चढ़कर खो जाऊँगी।