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"एक बच्ची को चिट्ठी / शिवप्रसाद जोशी" के अवतरणों में अंतर

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10:12, 6 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण

हमारे चेहरे धूल और पसीने से भर जाते हैं
बुख़ार से तपा रहता है शरीर
उदासी बर्फ़ की तरह भीतर जमी रहती है
और तुम्हारी याद आती है तान्या

पूरी ईमानदारी से
हम अपने काम पर निकलते हैं
बहुत कम हँसते हैं
दूर खड़े रहते हैं
और बार बार चश्मा उतारकर साफ़ करते हैं
पर ये कुंठा नहीं है तान्या
न किसी तरह का भय
युवा उम्र में ये कोई ठंडापन भी नहीं है

बड़े शहर में हम लड़खड़ाते हैं
लेकिन अपने पर हमें दया नहीं आती
कि आख़िर आए ही क्यों
मनुष्य की प्राचीन चाल से
हम शहर में घूमते हैं
तुम हमारे कानों में गूँजती हो
रात के चौकीदार की सीटी की तरह
अमीर खुसरो के गीतों की तरह

हम थे बहुत छोटे
दादा-दादी जब गए
पहचानते हैं तस्वीरों से हम उन्हें
अलग-अलग ढंग से हम उनकी कल्पना करते हैं
वे हमारे बीच आ जाते हैं
तुम्हारी तस्वीर देखकर उन्हें याद करते हैं तान्या
ये कितना अजीब है जिन्हें कभी
देखा नहीं उनकी याद आती है
क्या ये चमत्कार है
सब यादें कोनों-कोनों से आकर
एक पुंज में समा जाती हैं
और वहाँ हम तुम्हें देखते हैं तान्या

हम सोचते थे
ये शहर हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता
बहुत कोशिशें हुईं तान्या
फुटपाथ पर नियम से चलते थे
हमें सड़क के बीचोंबीच घसीट लाता था कोई
सत्ता की सवारी निकलती थी
हमें धकिया कर बदबू और मैल में फेंक दिया जाता था
पर हमने इसे नियति नहीं माना
ये साफ़-साफ़ धोखा था
हम इसे नियति कह देते
तो तुम्हें भूल जाते तान्या
हमारे पूर्वजों ने जो आग जलाई थी
वह अब भी हमारे भीतर ज़िंदा है
इस शहर में हमारा अमूर्त सा व्यवहार
कइयों को हैरत और खीझ में डाल देता है

तान्या चिट्ठियाँ आती हैं उनमें
पैसे न बचा पाने का चीत्कार है
बौखलाहट है कुशलक्षेम की जगह
उम्मीदें पैसों पर टिकी हैं
तुम देखोगी कि बड़ी चीख़-पुकार है यहाँ
लोग कहीं नहीं पहुँचते
आपस में घातक धक्का-मुक्की मची है
तुम हँसोगी कि एक दूसरे पर गिरते-पड़ते लोग
आख़िर कैसे-कैसे गोल-गोल घूम रहे हैं
ये कितनी रंगीन और सुंदर गेंद है
शायद तुम इससे खेलना चाहो

तुम्हारी याद आती है तान्या
फ़रेब दुनिया को सिकोड़ने पर तुला है
आप चीज़ों को देख लें
और कहने की ज़ुर्रत कर लें
ये अंतत: एकालाप साबित होता है
और कोई भी चीज़ खुलकर सामने नहीं आती
हमारे पास कोई रहस्य नहीं है तान्या
जीवन का रहस्य खोजने में
लोगों ने कितना समय गँवाया है
कितनी दूर गए हैं लोग
जबकि तुम्हारी हँसी आदिकाल से
हमारे पास है

तुम हमारे काँच जैसे शरीरों का
मज़बूत पानी हो
धूल-पसीने बुखार और आँसुओं से भर गए
चेहरे पर
जो पानी हम गिराते हैं
वह भी तुम हो तान्या