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{{KKRachna
|रचनाकार=माखनलाल चतुर्वेदी
|संग्रह= हिम तरंगिनी / माखनलाल चतुर्वेदी
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<poem>
जागना अपराध!
इस विजन बन -वन गोद में सखि,
मुक्ति-बन्धन-मोद में सखि,
विष-प्रहार-प्रमोद में सखि,
कस्र्ण धन-सी,
तरल घन -सी
सिसकियों के सधन बनसघन वन-सी,
श्याम-सी,
ताजे, कटे-से,
पुस्र्ष या पशु
आय चाहे जाय,
खोलती सी जायशाप,
कसकर बाँधती वरदान-
पाप में-
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