भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"उड़ने दे घनश्याम गगन में / माखनलाल चतुर्वेदी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=माखनलाल चतुर्वेदी |संग्रह=हिम तरंगिनी / माखनला...) |
|||
पंक्ति 17: | पंक्ति 17: | ||
सुख-दुख के झोंके खा-खाकर | सुख-दुख के झोंके खा-खाकर | ||
ले अवसर उड़ान अकुलाकर | ले अवसर उड़ान अकुलाकर | ||
− | हुई मस्त दिलदार | + | हुई मस्त दिलदार लगन में |
उड़ने दे धनश्याम गगन में! | उड़ने दे धनश्याम गगन में! | ||
16:41, 6 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण
उड़ने दे घनश्याम गगन में|
बिन हरियाली के माली पर
बिना राग फैली लाली पर
बिना वृक्ष ऊगी डाली पर
फूली नहीं समाती तन में
उड़ने दे धनश्याम गगन में!
स्मृति-पंखें फैला-फैला कर
सुख-दुख के झोंके खा-खाकर
ले अवसर उड़ान अकुलाकर
हुई मस्त दिलदार लगन में
उड़ने दे धनश्याम गगन में!
चमक रहीं कलियाँ चुन लूँगी
कलानाथ अपना कर लूँगी
एक बार ’पी कहाँ’ कहूँगी
देखूँगी अपने नैनन में
उड़ने दे धनश्याम गगन में!
नाचूँ जरा सनेह नदी में
मिलूँ महासागर के जी में
पागलनी के पागलपन ले--
तुझे गूँथ दूँ कृष्णार्पण में
उड़ने दे धनश्याम गगन में!