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"गीत गाने दो मुझे / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"" के अवतरणों में अंतर

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गीत गाने दो मुझे तो,
 
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वेदना को रोकने को।
 
वेदना को रोकने को।
 
  
 
चोट खाकर राह चलते
 
चोट खाकर राह चलते
 
 
होश के भी होश छूटे,
 
होश के भी होश छूटे,
 
 
हाथ जो पाथेय थे, ठग-
 
हाथ जो पाथेय थे, ठग-
 
 
ठाकुरों ने रात लूटे,
 
ठाकुरों ने रात लूटे,
 
 
कंठ रूकता जा रहा है,
 
कंठ रूकता जा रहा है,
 
 
आ रहा है काल देखे।
 
आ रहा है काल देखे।
 
  
 
भर गया है ज़हर से
 
भर गया है ज़हर से
 
 
संसार जैसे हार खाकर,
 
संसार जैसे हार खाकर,
 
 
देखते हैं लोग लोगों को,
 
देखते हैं लोग लोगों को,
 
 
सही परिचय न पाकर,
 
सही परिचय न पाकर,
 
 
बुझ गई है लौ पृथा की,
 
बुझ गई है लौ पृथा की,
 
 
जल उठो फिर सींचने को।
 
जल उठो फिर सींचने को।
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23:00, 8 अक्टूबर 2009 का अवतरण

</poem> गीत गाने दो मुझे तो, वेदना को रोकने को।

चोट खाकर राह चलते होश के भी होश छूटे, हाथ जो पाथेय थे, ठग- ठाकुरों ने रात लूटे, कंठ रूकता जा रहा है, आ रहा है काल देखे।

भर गया है ज़हर से संसार जैसे हार खाकर, देखते हैं लोग लोगों को, सही परिचय न पाकर, बुझ गई है लौ पृथा की, जल उठो फिर सींचने को। </poem>