"प्रियतम / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"" के अवतरणों में अंतर
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− | }}एक दिन विष्णुजी के पास गए नारद जी, | + | }} |
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+ | एक दिन विष्णुजी के पास गए नारद जी, | ||
पूछा, "मृत्युलोक में कौन है पुण्यश्यलोक | पूछा, "मृत्युलोक में कौन है पुण्यश्यलोक | ||
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भक्त तुम्हारा प्रधान?" | भक्त तुम्हारा प्रधान?" | ||
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विष्णु जी ने कहा, "एक सज्जन किसान है | विष्णु जी ने कहा, "एक सज्जन किसान है | ||
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प्राणों से भी प्रियतम।" | प्राणों से भी प्रियतम।" | ||
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"उसकी परीक्षा लूँगा", हँसे विष्णु सुनकर यह, | "उसकी परीक्षा लूँगा", हँसे विष्णु सुनकर यह, | ||
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कहा कि, "ले सकते हो।" | कहा कि, "ले सकते हो।" | ||
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नारद जी चल दिए | नारद जी चल दिए | ||
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पहुँचे भक्त के यहॉं | पहुँचे भक्त के यहॉं | ||
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देखा, हल जोतकर आया वह दोपहर को, | देखा, हल जोतकर आया वह दोपहर को, | ||
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दरवाज़े पहुँचकर रामजी का नाम लिया, | दरवाज़े पहुँचकर रामजी का नाम लिया, | ||
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स्नान-भोजन करके | स्नान-भोजन करके | ||
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फिर चला गया काम पर। | फिर चला गया काम पर। | ||
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शाम को आया दरवाज़े फिर नाम लिया, | शाम को आया दरवाज़े फिर नाम लिया, | ||
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प्रात: काल चलते समय | प्रात: काल चलते समय | ||
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एक बार फिर उसने | एक बार फिर उसने | ||
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मधुर नाम स्मरण किया। | मधुर नाम स्मरण किया। | ||
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"बस केवल तीन बार?" | "बस केवल तीन बार?" | ||
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नारद चकरा गए- | नारद चकरा गए- | ||
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किन्तु भगवान को किसान ही यह याद आया? | किन्तु भगवान को किसान ही यह याद आया? | ||
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गए विष्णुलोक | गए विष्णुलोक | ||
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बोले भगवान से | बोले भगवान से | ||
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"देखा किसान को | "देखा किसान को | ||
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दिन भर में तीन बार | दिन भर में तीन बार | ||
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नाम उसने लिया है।" | नाम उसने लिया है।" | ||
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बोले विष्णु, "नारद जी, | बोले विष्णु, "नारद जी, | ||
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आवश्यक दूसरा | आवश्यक दूसरा | ||
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एक काम आया है | एक काम आया है | ||
− | + | तुम्हें छोड़कर कोई | |
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और नहीं कर सकता। | और नहीं कर सकता। | ||
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साधारण विषय यह। | साधारण विषय यह। | ||
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बाद को विवाद होगा, | बाद को विवाद होगा, | ||
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तब तक यह आवश्यक कार्य पूरा कीजिए | तब तक यह आवश्यक कार्य पूरा कीजिए | ||
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तैल-पूर्ण पात्र यह | तैल-पूर्ण पात्र यह | ||
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लेकर प्रदक्षिणा कर आइए भूमंडल की | लेकर प्रदक्षिणा कर आइए भूमंडल की | ||
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ध्यान रहे सविशेष | ध्यान रहे सविशेष | ||
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एक बूँद भी इससे | एक बूँद भी इससे | ||
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तेल न गिरने पाए।" | तेल न गिरने पाए।" | ||
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लेकर चले नारद जी | लेकर चले नारद जी | ||
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आज्ञा पर धृत-लक्ष्य | आज्ञा पर धृत-लक्ष्य | ||
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एक बूँद तेल उस पात्र से गिरे नहीं। | एक बूँद तेल उस पात्र से गिरे नहीं। | ||
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योगीराज जल्द ही | योगीराज जल्द ही | ||
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विश्व-पर्यटन करके | विश्व-पर्यटन करके | ||
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लौटे बैकुंठ को | लौटे बैकुंठ को | ||
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तेल एक बूँद भी उस पात्र से गिरा नहीं | तेल एक बूँद भी उस पात्र से गिरा नहीं | ||
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उल्लास मन में भरा था | उल्लास मन में भरा था | ||
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यह सोचकर तेल का रहस्य एक | यह सोचकर तेल का रहस्य एक | ||
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अवगत होगा नया। | अवगत होगा नया। | ||
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नारद को देखकर विष्णु भगवान ने | नारद को देखकर विष्णु भगवान ने | ||
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बैठाया स्नेह से | बैठाया स्नेह से | ||
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कहा, "यह उत्तर तुम्हारा यही आ गया | कहा, "यह उत्तर तुम्हारा यही आ गया | ||
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बतलाओ, पात्र लेकर जाते समय कितनी बार | बतलाओ, पात्र लेकर जाते समय कितनी बार | ||
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नाम इष्ट का लिया?" | नाम इष्ट का लिया?" | ||
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"एक बार भी नहीं।" | "एक बार भी नहीं।" | ||
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शंकित हृदय से कहा नारद ने विष्णु से | शंकित हृदय से कहा नारद ने विष्णु से | ||
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"काम तुम्हारा ही था | "काम तुम्हारा ही था | ||
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ध्यान उसी से लगा रहा | ध्यान उसी से लगा रहा | ||
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नाम फिर क्या लेता और?" | नाम फिर क्या लेता और?" | ||
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विष्णु ने कहा, "नारद | विष्णु ने कहा, "नारद | ||
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उस किसान का भी काम | उस किसान का भी काम | ||
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मेरा दिया हुया है। | मेरा दिया हुया है। | ||
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उत्तरदायित्व कई लादे हैं एक साथ | उत्तरदायित्व कई लादे हैं एक साथ | ||
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सबको निभाता और | सबको निभाता और | ||
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काम करता हुआ | काम करता हुआ | ||
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नाम भी वह लेता है | नाम भी वह लेता है | ||
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इसी से है प्रियतम।" | इसी से है प्रियतम।" | ||
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नारद लज्जित हुए | नारद लज्जित हुए | ||
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कहा, "यह सत्य है।" | कहा, "यह सत्य है।" | ||
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23:09, 8 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण
एक दिन विष्णुजी के पास गए नारद जी,
पूछा, "मृत्युलोक में कौन है पुण्यश्यलोक
भक्त तुम्हारा प्रधान?"
विष्णु जी ने कहा, "एक सज्जन किसान है
प्राणों से भी प्रियतम।"
"उसकी परीक्षा लूँगा", हँसे विष्णु सुनकर यह,
कहा कि, "ले सकते हो।"
नारद जी चल दिए
पहुँचे भक्त के यहॉं
देखा, हल जोतकर आया वह दोपहर को,
दरवाज़े पहुँचकर रामजी का नाम लिया,
स्नान-भोजन करके
फिर चला गया काम पर।
शाम को आया दरवाज़े फिर नाम लिया,
प्रात: काल चलते समय
एक बार फिर उसने
मधुर नाम स्मरण किया।
"बस केवल तीन बार?"
नारद चकरा गए-
किन्तु भगवान को किसान ही यह याद आया?
गए विष्णुलोक
बोले भगवान से
"देखा किसान को
दिन भर में तीन बार
नाम उसने लिया है।"
बोले विष्णु, "नारद जी,
आवश्यक दूसरा
एक काम आया है
तुम्हें छोड़कर कोई
और नहीं कर सकता।
साधारण विषय यह।
बाद को विवाद होगा,
तब तक यह आवश्यक कार्य पूरा कीजिए
तैल-पूर्ण पात्र यह
लेकर प्रदक्षिणा कर आइए भूमंडल की
ध्यान रहे सविशेष
एक बूँद भी इससे
तेल न गिरने पाए।"
लेकर चले नारद जी
आज्ञा पर धृत-लक्ष्य
एक बूँद तेल उस पात्र से गिरे नहीं।
योगीराज जल्द ही
विश्व-पर्यटन करके
लौटे बैकुंठ को
तेल एक बूँद भी उस पात्र से गिरा नहीं
उल्लास मन में भरा था
यह सोचकर तेल का रहस्य एक
अवगत होगा नया।
नारद को देखकर विष्णु भगवान ने
बैठाया स्नेह से
कहा, "यह उत्तर तुम्हारा यही आ गया
बतलाओ, पात्र लेकर जाते समय कितनी बार
नाम इष्ट का लिया?"
"एक बार भी नहीं।"
शंकित हृदय से कहा नारद ने विष्णु से
"काम तुम्हारा ही था
ध्यान उसी से लगा रहा
नाम फिर क्या लेता और?"
विष्णु ने कहा, "नारद
उस किसान का भी काम
मेरा दिया हुया है।
उत्तरदायित्व कई लादे हैं एक साथ
सबको निभाता और
काम करता हुआ
नाम भी वह लेता है
इसी से है प्रियतम।"
नारद लज्जित हुए
कहा, "यह सत्य है।"