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"शरण में जन, जननि / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"" के अवतरणों में अंतर

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|रचनाकार= सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
 
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अनगिनित आ गये शरण में जन, जननि-<br>
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सुरभि-सुमनावली खुली, मधुऋतु अवनि!<br>
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स्नेह से पंक - उर हुए पंकज मधुर,<br>
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अनगिनित आ गये शरण में जन, जननि-
ऊर्ध्व - दृग गगन में देखते मुक्ति-मणि!<br>
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सुरभि-सुमनावली खुली, मधुऋतु अवनि!
बीत रे गयी निशि, देश लख हँसी दिशि,<br>
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स्नेह से पंक - उर हुए पंकज मधुर,
अखिल के कण्ठ की उठी आनन्द-ध्वनि।<br>
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ऊर्ध्व - दृग गगन में देखते मुक्ति-मणि!
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बीत रे गयी निशि, देश लख हँसी दिशि,
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अखिल के कण्ठ की उठी आनन्द-ध्वनि।
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23:21, 8 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण

अनगिनित आ गये शरण में जन, जननि-
सुरभि-सुमनावली खुली, मधुऋतु अवनि!
स्नेह से पंक - उर हुए पंकज मधुर,
ऊर्ध्व - दृग गगन में देखते मुक्ति-मणि!
बीत रे गयी निशि, देश लख हँसी दिशि,
अखिल के कण्ठ की उठी आनन्द-ध्वनि।