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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=रघुवीर सहाय}}<poem>चौड़ी सड़्क सड़क गली पतली थी<br />दिन का समय घनी बदली थी<br />रामदास उस दिन उदास था<br />अंत समय आ गया पास था<br />उसे बता, यह दिया गया था, उसकी हत्या होगी।<br /> <br />धीरे धीरे चला अकेले<br />सोचा साथ किसी को ले ले<br />फिर रह गया, सड़्क सड़क पर सब थे<br />सभी मौन थे, सभी निहत्थे<br />सभी जानते थे यह, उस दिन उसकी हत्या होगी।<br /> <br />खड़ा हुआ वह बीच सड़क पर<br />दोनों हाँथ हाथ पेट पर रख कर<br />सधे कदम रख कर के आये<br />लोग सिमट कर आँख गड़ाये<br /> लगे देखने उसको, जिसकी तय था हत्या होगी।<br /> <br />निकल गली से तब हत्यारा<br />आया उसने नाम पुकारा<br />हाँथ हाथ तौल कर चाकू मारा<br />छूटा लोहू लहू का फव्वारा<br />कहा नहीं था उसनें आखिर उसकी हत्या होगी?<br /> <br />भीड़ ठेल कर लौट आया वह<br />मरा हुआ है रामदास यह<br />'देखो-देखो' बार बार कह<br />लोग निड़र निडर उस जगह खडे खड़े रह<br />लगे बुलानें उन्हें, जिन्हें संशय था हत्या होगी।<br /poem>