"शक्ति कहाँ है / प्रताप सहगल" के अवतरणों में अंतर
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रताप सहगल }} <poem> सदियों पहले विष्णु चंद्र शर्म...) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 3: | पंक्ति 3: | ||
|रचनाकार=प्रताप सहगल | |रचनाकार=प्रताप सहगल | ||
}} | }} | ||
+ | {{KKCatKavita}} | ||
<poem> | <poem> | ||
सदियों पहले | सदियों पहले |
19:42, 10 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण
सदियों पहले
विष्णु चंद्र शर्मा ने एक कहानी सुनाई
जंगल में एक शेर था
वह जब चाहता जानवरों को
मार कर खा जाता
जानवर परेशान हुए
उन्होंने सभा की
किया फैसला
कि हममें से
एक प्रस्तुत होगा
शेर की मांद में
शेर प्रसन्न था
उसके पास रोज़ एक शिकार
खुद-ब-खुद आने लगा
शेर लुत्फ उठाने लगा
एक दिन खरगोश की बारी आई
बाकी की कहानी तो आप जानते ही हैं
यह कहानी चट्टान की तरह लुढ़कती हुई
मेरे पिता तक पहुँची
मेरे पिता से मुझ तक
कुछ गोल कुछ नुकीली
कहानी ने मेरे जिस्म को छीला
और कहीं अंदर तक कुंडली मार कर बैठ गई
फिर धीरे-धीरे उसमें एक हलचल हुई
मैंने कहानी सुनाई अपने वक़्त्त को
पूर्व पक्ष ज्यों का त्यों
पर उत्तर पक्ष यों
खरगोश को देखते ही शेर गरजा
इतनी देर क्यों
और ऊपर से तुम
पिद्दी के शोरबे से भला पेट भरता है
खरगोश अभिनय में उस्ताद था
थर-थर काँपने लगा
साँस खींच-खींच कर हाँफने लगा
बोला- हुज़ूर के दरबार में आ रहा था
कि एक शेर और मिल गया
गरजा
"मैं हूं जंगल का राजा, तू कहां जाता है?"
शेर के राजत्व को चुनौती थी
वह भूख भूल गया
और खरगोश के साथ
दूसरे राजा की खोज में निकल पड़ा
खरगोश उसे एक कुएँ के पास ले गया
शेर गुर्राया
खरगोश मुस्कराया
राजा को कैसा बुद्धू बनाया
गुर्राहट की प्रतिध्वनि से
कुआँ काँपने लगा
अंदर से बाहर
और बाहर से अंदर
जंगल में
गुर्राहट का साम्राज्य था
शेर को एकात्म होते देर न लगी
उसने अद्वैत का अर्थ समझ लिया
और पलक झपकते ही
खरगोश को धर लिया।