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"उक्ति / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"" के अवतरणों में अंतर

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कुछ न हुआ, न हो।<br>
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मुझे विश्व का सुख, श्री, यदि केवल<br>
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पास तुम रहो!<br>
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बहु रस साहित्य विपुल यदि न पढ़ा<br>
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कथा यदि कहो।<br><br>
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रहे, समझ है मुझमें पूरी, तुम
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:::कथा यदि कहो।
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01:27, 11 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण

कुछ न हुआ, न हो
मुझे विश्व का सुख, श्री, यदि केवल
पास तुम रहो!
मेरे नभ के बादल यदि न कटे-
चन्द्र रह गया ढका,
तिमिर रात को तिरकर यदि न अटे
लेश गगन-भास का,
रहेंगे अधर हँसते, पथ पर, तुम
हाथ यदि गहो।
बहु-रस साहित्य विपुल यदि न पढ़ा--
मन्द सबों ने कहा,
मेरा काव्यानुमान यदि न बढ़ा--
ज्ञान, जहाँ का रहा,
रहे, समझ है मुझमें पूरी, तुम
कथा यदि कहो।