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Kavita Kosh से
मुझे विश्व का सुख, श्री, यदि केवल
::::पास तुम रहो!
मेरे नभ के बादल यदि न कटे-
:::चन्द्र रह गया ढका,
तिमिर रात को तिरकर यदि न अटे
रहेंगे अधर हँसते, पथ पर, तुम
:::हाथ यदि गहो।बहु -रस साहित्य विपुल यदि न पढ़ा--:::मन्द सबों ने कहा,मेरा काव्यानुमान यदि न बढ़ा--:::ज्ञान , जहाँ का रहा,
रहे, समझ है मुझमें पूरी, तुम
:::कथा यदि कहो। </PREpoem>